Thursday, December 3, 2009

पक्षी विहार

नवाबगंज उन्नाव । जनपद की शान कहे जाने वाले पक्षी विहार का मुख्य आकर्षण यहां 22.4 एकड़ में फैली प्राकृतिक झील है। जिस पर ही मोहित होकर 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसे इंदिरा गांधी के नाम पर प्रियदर्शिनी पक्षी विहार नाम रखा था और शिकार रहित क्षेत्र घोषित किया था। झील परिसर में तीन विभाग वन्य, जंतु वन विभाग और पर्यटन विभाग के सहयोग से विकसित किया गया था पर विभागीय उपेक्षा और कागजों पर हो रहे कार्यो से इस पक्षी विहार का अस्तित्व ही समाप्त हो रहा था। पांच जून 2008 को विश्व पर्यावरण दिवस पर एक संगोष्ठी हुई और तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेषर ने इसको पूर्ण विकसित करने का जिम्मा उठाया। उनके प्रयासों से सफलता मिली और करीब हजारो की संख्या में पक्षी इन दिनों कलरव कर रहे हैं।
मालूम हो कि नवाबगंज पक्षी विहार जनपद की शान के रूप में देखा जाता है। यह पक्षी विहार 22.4 एकड़ के बड़े भूभाग में फैला है। यह एक प्राकृतिक झील है। मालूम हो कि कस्बे की यह मनोहरी झील जिसे गांव के लोग कुल्ली वैन भी कहते थे। यह झील साल के 12 महीनों में भरी रहती थी और कस्बे का पानी भी यहां पहुंचता था। जैसे-जैसे प्रकृति से छेड़छाड़ होती रही झील में पानी कम होता रहा और बीते पांच वर्षो से झील एकदम सूखी रही। इसके विकास हेतु प्रतिवर्ष लाखों रुपये कागजों पर ही व्यय होता रहा पर हकीकत कुछ और ही रही।
क्षेत्र के ग्राम कुसुंभी निवासी अवकाश प्राप्त डिप्टी कलेक्टर डा. छत्रपाल सिंह झील में उन दिनों हो रहे शिकार को लेकर 1969 में तत्कालीन मुख्य वन्य जंतु प्रतिपालक एवं अरुण पाल उ.प्र. शासन विजय बहादुर सिंह से शिकायती की। इस पर इसका निरीक्षण किया गया और इस क्षेत्र को शिकार निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया और एक वन्य जंतु रक्षक की नियुक्ति कर दी।
इसके बाद वन मंत्री अजित प्रताप सिंह ने भी इस झील का निरीक्षण कर पांच किमी. परिधि तक शिकार निषिद्ध क्षेत्र घोषित किया। इसके बाद 11 नवंबर 1975 को प्रदेश के राज्यपाल की एक अधिसूचना के आधीन डा. छत्रपाल सिंह को अवैतनिक वन्य जंतु प्रतिपालक उन्नाव नियुक्त किया जो मृत्यु पर्यंत 18 वर्षो तक रहे।
बताते हैं कि उन दिनों तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा पक्षी विहार के सामने भवानीपुर गांव में एक सभा में आये थे। यहां प्राकृतिक मनोरम दृश्य देखा तो इसे पक्षी विहार बनाने की घोषणा की और इंदिरा गांधी के नाम पर प्रियदर्शिनी पक्षी विहार की घोषणा कर दी।
और 19 नवंबर 1975 को प्रियदर्शनी पक्षी विहार की आधारशिला रख दी। जिसको निर्माण में कई वर्ष लगे। 11 मार्च 1984 को कैफेटेरिया तथा मोटल के नवनिर्मित भवनों का उद्घाटन तत्कालीन पर्यटन मंत्री सीमा अंबार रिजवी ने किया तथा पंद्रह जनवरी 1988 को पक्षी विहार संग्रहालय का उद्घाटन तत्कालीन मंत्री बल्देव आर्य ने किया।
यहां इसके अलावा डियर पार्क जिसमें दर्जनों तरह के जानवर थे और बच्चों का पार्क भी बनाया गया। यहां तीन विभाग वन्य जंतु विभाग जिसका काम झील की सुरक्षा करना और झील के सौंदर्य को बनाये रखना है। वन विभाग के जिम्मे डियर पार्क और बच्चों के पार्क की जिम्मेदारी रही और पर्यटन विभाग के जिम्मे मोटल और रेस्टोरेंट की जिम्मेदारी रही।
एक समय ऐसा रहा कि यह पर्यटन के नक्से में एक अच्छा स्थान रखता था पर धीरे-धीरे यह अपनी छवि खोता गया। यहां अधिकारी और कर्मचारी इसकी सौंदर्यता बनाये रखने की बजाय अपनी जेबें भरने में मशगूल हो गये। झील परिसर में शिकार, पेड़ों की कटान, हिरनों को चारा न मिलना, बच्चों के पार्क की देखरेख न करने से पक्षी विहार का स्वरूप ही बदल गया। यहां लाखों में आने वाले पक्षियों की संख्या सैकड़ों में सिमट गयी।
भला हो पांच जून 2008 को विश्व पर्यावरण दिवस के कार्यक्रम का जब मुख्य अतिथि तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेषर को समस्या के बारे में बताया गया तो उन्होंने विकास कराने की जिम्मेदारी ली और झील में पानी भरवाने के साथ पूर्ण विकसित कराया जिससे आज करीब हजारो की संख्या में पक्षी कलरव कर रहे हैं।
पक्षी विहार के पूर्ण विकास और खोयी छवि लाने के लिए पांच जून 2007 विश्व पर्यावरण दिवस का कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हुआ। इस दिन कंजरवेटर वन्य जंतु विभाग ईवा शर्मा ने एक कार्यक्रम रखा और जिसमें मुख्य अतिथि तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेखर वन्य जंतु विभाग ईवा शर्मा ने एक कार्यक्रम रखा और जिसमें मुख्य अतिथि जिलाधिकारी राजशेखर थे। इस दिन बताया गया कि झील परिसर में पानी न आया और इसको विकसित नहीं किया गया तो इसको पक्षी विहार की श्रेणी से ही हटा दिया जायेगा।
जनपद की इस शान को बचाने के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी ने इसे एक चैलेंज के रूप में लिया। अधिकारियों के साथ बैठक पूर्ण विकास की रूपरेखा तैयार की।
पहले फेज में जिम्मेदारी सिंचाई विभाग को सौंपी गयी जिसके द्वारा झील में पानी भरने के फीडर चैनल साफ कर झील में पानी भरना आरंभ किया। कहते हैं अच्छे काम करो तो भगवान भी साथ देता है यही हुआ। कई वर्षो से बारिश नहीं हो रही थी। इस बार जमकर बारिश हुई। किसान को नहर के पानी की आवश्यकता नहीं पड़ी और नहर में पानी भर गया। और जाड़ा आरंभ होते ही जब एक दो विदेशी पक्षी यहां पानी होने से दिखे तो विकास का दूसरा फेज आरंभ हुआ। झील के चारों ओर इंटरलिकिंग कराकर पर्यटकों के घूमने का स्थान बनाया गया।
झील में दो माइक्रो दूरबीन और 4 अन्य दूरबीन दी गयी जिनसे यहां रखे गये चार गाइडों के माध्यम से से पर्यटकों को पक्षियों की जानकारी दी जा सके।
इसके साथ ही दो हाईमाक्स रोशनी के लिए और पूरे परिसर में बैरीकेटिंग पक्षी संग्रहालय का पूर्ण विकास कराकर प्रोजेक्टर लगा दिया गया और इसकी वेबसाइट nawabganjbirds.com बना दी गयी। बच्चों के पार्क को भी पूर्ण रूप से विकसित कराने के साथ ही बैठने के समुचित शेड बनाये गये।
पक्षी विहार को पूर्ण विकसित होने के बाद ही यहां विदेशी मेहमान पक्षी चार हजार किमी. का रास्ता तय कर यहां करीब पचास हजार पक्षी बसेरा डाले हैं। जिनमें विदेशी काटन टेल, स्फल बिल, डकमैडवाल विजेल, सोलर, कामन प्रोजल्ड, प्रोपल्ड, समन, काटन टील, ग्रेड केस्टेड, ग्रेव कूट, कक्को, चेलीटेडेड, बाग स्टाइल, मलार्ड, साइब्रेरियर, जलजर आदि दर्जनों विदेशी पक्षी इन दिनों विचरण कर रहे हैं।

Wednesday, December 10, 2008



The Cotton Pygmy Goose or the Cotton Teal,[2] Nettapus coromandelianus is a small perching duck which breeds in India, Pakistan, southeast Asia and south to northern Australia. It is locally known as Girri, Girria, Girja (Hindi); Gurgura (Etawah); Bali hans (Bengal); Bhullia hans (Bangladesh); Dandana (Orissa); Ade, Atla (Ratnagiri); Naher, Keeke, Chuwa (Nowgong, Assam); Baher, Kararhi (Sind, Pakistan).

These are gregarious birds, forming large flocks in winter, often mixed with other diving ducks, such as other pochards. They feed mainly by diving or dabbling. They eat aquatic plants, and typically upend for food more than most diving ducks.Red-crested pochards build a nest by the lakeside among vegetation and lay 8-12 pale green eggs. The birds' status in the British Isles is much confused due to the fact that there have been many escapes and deliberate releases over the years, as well as natural visitors from the continent. However, it is most likely that they are escapees that are now breeding wild and have built up a successful feral population. They are most numerous around areas of England including Gloucestershire, Oxfordshire and Northamptonshire. Wild birds occasionally turn up at places such as Abberton Reservoir, Essex.

The Coot is 36-42 cm long, and is largely black except for the white facial shield (which gave rise to the phrase "as bald as a coot"). As a swimming species, the Coot has partial webbing on its long strong toes.The juvenile is paler than the adult, has a whitish breast, and lacks the facial shield; the adult black plumage develops when about 3-4 months old, but the white shield is only fully developed at about one year old, some time later.This is a noisy bird with a wide repertoire of crackling, explosive or trumpeting calls, often given at night.

The Ruddy Shelduck is a distinctive species, 58-70 cm long with a 110-135 cm wingspan. It has orange-brown body plumage and a paler head. The wings are white with black flight feathers. It swims well, and in flight looks heavy, more like a goose than a duck. The sexes of this striking species are similar, but the male has a black ring at the bottom of the neck in the breeding season summer, and the female often has a white face patch. The call is a loud wild honking.In captivity this species is generally aggressive and antisocial and is best housed in pairs unless in a very large area. Then it may mix with other species, although it will still be feisty at breeding time.
The Common Teal is the smallest dabbling duck at 34-38 cm length with a 53-59 cm wingspan. The breeding male has grey flanks and back, with a yellow rear end and a white-edged green speculum, obvious in flight or at rest. It has a chestnut head with a green eye patch. It is distinguished from drake Green-winged Teal by a horizontal white scapular stripe, no vertical white bar on side of breast, and thin buff lines on its head.The females are light brown, with plumage much like a female Mallard. They can be distinguished from most ducks on size and shape, and the speculum, although distinguishing them from female Green-winged Teal is difficult.In non-breeding (eclipse) plumage, the drake looks more like the female.